किडनी की वो बीमारी, जो देती है धीमी मौत, जान लें क्या है CKD और कैसे करें इससे बचाव
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किडनी की वो बीमारी, जो देती है धीमी मौत, जान लें क्या है CKD और कैसे करें इससे बचाव

What is CKD Disease: लोगों में बदलती लाइफस्टाइल के साथ CKD नाम की एक ऐसी बीमारी भी बढ़ रही है, जिसके शुरू में कोई लक्षण नहीं उभरते. लेकिन अगर वक्त से इलाज न हो तो दोनों गुर्दों को खराब कर इंसान को धीमी मौत की ओर ले जाती है.

 

किडनी की वो बीमारी, जो देती है धीमी मौत, जान लें क्या है CKD और कैसे करें इससे बचाव

Symptoms of CKD Disease: क्रोनिक किडनी रोग (CKD) एक बढ़ती बीमारी है, जिससे दुनिया भर में लाखों लोग पीड़ित है. इस बीमारी में किडनी की कार्यक्षमता में धीरे-धीरे गिरावट आने लगती है. अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए तो यह अक्सर अंतिम चरण के किडनी रोग (ESRD) में बदल जाता है. हमारे गुर्दे यानी किडनी शरीर में बनने वाले विषाक्त पदार्थों को फ़िल्टर करने, ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने और इलेक्ट्रोलाइट को संतुलित बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं.

ऐसे में जब किडनी अपने कार्य को ढंग से नहीं कर पाती हैं तो शरीर में कई प्रकार की बीमारियां शुरू हो जाती हैं, जो आगे चलकर जानलेवा हो जाती हैं. ऐसे में आज हमें इस बीमारी (CKD) की शुरुआती पहचान, उसके इलाज और मरीजों पर इसके असर के बारे में जान लेना चाहिए. भारत के मशहूर नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ पोखरियाल (Dr. Saurabh Pokriyal), जो वायटसकेयर मेड लाइफ प्राइवेट लिमिटेज के को-फाउंडर और डायरेक्टर भी हैं, उन्होंने इस बारे में Zee News से बात की

CKD के स्टेजेज कौन- कौन से हैं?

CKD  को आमतौर पर ग्लोमेरुलर निस्पंदन दर (GFR) के आधार पर पांच चरणों में बांटा जा सकता है. इस फिल्टरेशन रेट्स से किडनी के काम करने की दर का पता चलता है. 

स्टेज 1: इस चरण में सामान्य या हाई GFR (≥90 एमएल/मिनट) होता है, जिससे पता चलता है कि यूरिन में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा हो रही है. 

स्टेज 2: इस चरण में जीएफआर (60-89 एमएल/मिनट) में हल्की कमी होती है और किडनी भी डैमेज होती रहती है.

स्टेज 3: इस चरण में GFR (30-59 एमएल/मिनट) में मध्यम कमी आती है. इसे अक्सर 3ए (45-59 एमएल/मिनट) और 3बी (30-44 एमएल/मिनट) में बांटा जाता है. 

स्टेज 4: इस चरण में GFR में गंभीर कमी (15-29 एमएल/मिनट) आ जाती है. ऐसे में रीनल रिप्लेसमेंट थेरेपी की तैयारी की जरूरत पड़ जाती है. 

स्टेज 5: इस आखिरी चरण में किडनी की बीमारी गंभीर हो जाती है, जिसमें (GFR<15 एमएल/मिनट) हो जाता है. ऐसे में मरीज की जान बचाने के लिए डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की बड़ा विकल्प बचता है. 

डॉक्टरों के मुताबिक इस बीमारी में एक स्टेज से दूसरे स्टेज तक प्रगति अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग हो सकती है और इसमें वर्षों लग सकते हैं. 

बीमारी बढ़ाने वाले कारक- 

1. डायबिटीज- हाइपरटेंशन: डायबिटीज और हाइपरटेंशन CKD की दो प्रमुख वजहें हैं. अगर इन दोनों चीजों पर कंट्रोल कर लें तो CKD के बढ़ने की स्पीड को कम किया जा सकता है. 

2. जेनेटिक्स: अगर किसी व्यक्ति का पारिवारिक इतिहास इस बीमारी से जुड़ा रहा है तो उसे CKD होने की संभावना ज्यादा होती है. 

3. लाइफस्टाइल: किसी व्यक्ति की डाइट, फिजिकल एक्टिविटी, स्मोकिंग और शराब का सेवन किडनी को बीमार कर सकता है. इनके साथ ही हाई सोडियम और प्रोसेस्ड फूड्स का सेवन भी किडनी रोग की वजह बन सकता है.

4. दवा और इलाज: कुछ दवाएं ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने किडनी को मदद कर सकती हैं. लेकिन कुछ ऐसी दवाइयां भी होती हैं, जिनके अधिक सेवन से किडनी डैमेज और NSAIDS जैसी दिक्कतें हो सकती हैं. 

5. रेगुलर चेकअप: किडनी में किसी भी तरह की अनियमितता को पकड़ने के लिए हमें समय- समय पर अपनी बॉडी का चेक अप करवाते रहना चाहिए. इससे हमें समय पर किडनी रोग को पकड़ने और उसका इलाज शुरू करवाने में मदद मिलती है. 

CKD के लक्षण क्या होते हैं?

डॉक्टरोंके मुताबिक अपने शुरुआती चरण में CKD कोई भी ध्यान देने लायक संकेत नहीं देता, जिसकी वजह से उसकी पहचान कर पाना मुश्किल हो जाता है. हालांकि जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, तब निम्नलिखित शामिल दिखने लगते हैं- 

1. थकान और कमजोरी

2. पैरों, टखनों या पैरों में सूजन

3. यूरिन की फ्रीक्वेंस कम- ज्यादा होना

4. बार- बार मितली या उल्टी आना

5. सांस लेने में कठिनाई होना

6. हाई ब्लड प्रेशर रहना 
 

CKD को कंट्रोल कैसे करें?

CKD बीमारी की लगातार बढ़ती संख्या मरीजों के साथ ही पहले से मुश्किलों से जूझ रही स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर बोझ डाल रही है. क्रोनिक किडनी रोग एक ऐसी बीमारी है, जिसे पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है. हालांकि इलाज की कई ऐसी विधियां हैं, जिनके इस्तेमाल से इसकी बढ़ने की दर को धीमा जरूर किया जा सकता है. 

हाई ब्लड प्रेशर: हाई ब्लड प्रेशर पर कंट्रोल करके गुर्दों की खराबी की दर को काफी हद तक कम किया जा सकता है. एसीईआई, एआरबी, रेनिन इनहिबिटर और एल्डोस्टेरोन एंटागोनिस्ट जैसी दवाओं के कुछ वर्ग के इस्तेमाल से ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने और प्रोटीनूरिया को कम करने में मदद करता है, जिससे सीकेडी की स्पीड धीमी हो जाती है.

डायबिटीज: अगर डायबिटीज लंबे समय तक अनियंत्रित रहे तो CKD के फैलने की स्पीड को बढ़ा देती है. हालांकि अगर ब्लड शुगर लेवल की लगातार मॉनिटरिंग की जाए तो सीकेडी की गति धीमा की जा सकती है. एसजीएलटी2 जैसी नई दवाएं भी डायबिटीज को कंट्रोल करने में मददगार पाई गई हैं. 

ओवर द काउंटर दवा का इस्तेमाल: कई लोग बिना डॉक्टर की प्रेस्क्रिप्शन के खुद ही मेडिकल स्टोर पर जाकर दवाएं खरीदकर सेवन कर लेते हैं. ऐसा करने की वजह से किडनी रोगियों की परेशानी को बढ़ सकती है. ऐसे में इससे बचना चाहिए. 

डाइट: CKD से पीड़ित लोगों को प्रोटीन, सोडियम, फॉस्फोरस और पोटेशियम युक्त आहार का सेवन करना चाहिए. इस तरह आहार सीकेडी की स्पीड को कम करने में मदद कर सकता है. 

शराब और स्मोकिंग से परहेज के साथ ही फिजिकल एक्टिविटी बढ़ाने, वजन कम करने जैसे उपायों से इस मारी को बढ़ने से रोका जा सकता है. इसके साथ ही पीड़ित को ध्यान और योग भी करना चाहिए, इससे तनाव कम करने में मदद मिलती है. 

(Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.)

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